ये रण है, प्रचंड !!!
जिन्दगी की जद्दोजहद से बेबस इंसान को मरते देखा है।
चन्दन सी इस माटी को लहू से रंगते देखा है।।
क्योंकि, ये रण है प्रचंड - ये रण है प्रचंड
कइयो को गिरते, तो कइयों को गिर कर सँभलते देखा है।
कइयों को लड़ते, तो कइयों को रण भूमि से भागते देखा है।।
कइयों के सपनो को साकार होते, तो काइयो के दिलो को टुटते देखा है।।।
क्योंकि, ये रण है प्रचंड - ये रण है प्रचंड
इस गुमनाम जिंदगी में कइयो को रैन-ए-गुलफाम में चमकते देखा है। तो
कइयो को साजिश-ऐ-रंजिश का शिकार होते देखा है।।
क्योंकि, ये रण है प्रचंड - ये रण है प्रचंड
इस रण भुमि में सैनिकों को अपने प्राण त्यागते देखा है।
गरिबी से बेबस इंसानो को गलियों के सड़कों पर झुलसते देखा है।।
क्योकि, ये रण है प्रचंड - ये रण है प्रचंड
कइयो को अपनी जिंदगी में परास्त होते देखा है। तो
कइयो को अपनी मंजिल पथ पर विजय का डंका बजाते देखा है।।
क्योकि, ये रण है प्रचंड - ये रण है प्रचंड
- गजेन्द्र सिंह
✍️
Wonderful bro. Your poem speaks about reality. Keep writing.
ReplyDeleteThank You karan
DeleteReally very inspiring poem. I am excited for your next poem.
ReplyDeleteI am also
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